बुरहानपुर (एजेंसी)। आंदोलन कर रहे किसान रवि पटेल ने बताया कि इस क्षेत्र में पांगरी सहित अन्य गांवों के आसपास पहले से ही कुल छह बांध मौजूद हैं। उनके जरिए यहां के किसान सिंचाई भी कर रहे हैं। इस क्षेत्र में नए बांध की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। सरकार और जल संसाधन विभाग मिलकर जबरन एक नया बांध हम पर थोप रहे हैं।
जिला प्रशासन के खिलाफ आंदोलन करते किसान -
मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में किसानों और जिला प्रशासन के अफसरों के बीच टकराव का मामला देखने को मिल रहा है। इसके बाद करीब 15 सौ प्रभावित किसानों ने चिट्ठी लिखकर राष्ट्रपति से सामूहिक आत्मदाह तक करने की इजाजत मांगी है। दरअसल, पूरा मामला जिले के खकनार क्षेत्र की पांगरी बांध परियोजना से जुड़ा हुआ है। इसमें जल संसाधन विभाग के द्वारा किसानों को उनकी जमीनों का मुआवजा दिए बगैर ही बांध का काम शुरू कराया जा रहा है।
यहां के प्रभावित किसान पहले मुआवजा लेकर ही बांध का काम करने देने की बात कह रहे हैं। साथ ही ऐसा न होने और सरकार द्वारा जबरन उनकी जमीन हड़पे जाने पर तीन गांवों के सैकड़ों किसानों के द्वारा सामूहिक आत्मदाह करने की बात कही जा रही है।
सैकड़ों किसानों ने मौके पर पहुंचकर रुकवाया काम
जानकारी के मुताबिक, बुरहानपुर शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर खकनार क्षेत्र में जल संसाधन विभाग के द्वारा पांगरी बांध परियोजना का काम शुरू करवाया जा रहा है। इस वजह से विभाग के अफसर पांगरी गांव में मशीनें लेकर खुदाई करवाने तक पहुंच गए थे। लेकिन इस बीच आसपास के करीब तीन गांव के सैकड़ों ग्रामीणों को इस बात की भनक लग गई और उन्होंने वहां पहुंचकर काम रुकवा दिया।
‘हमारी जमीनों का मुआवजा अब तक नहीं मिला’
बांध के निर्माण स्थल पर पहुंचे पांगरी, बसाली और नागझिरी गांव के ग्रामीणों का कहना था कि उन्हें अब तक उनकी जमीनों का मुआवजा नहीं दिया गया है। इसके चलते वे यहां पर बांध का निर्माण कार्य नहीं होने देंगे। हालांकि जल संसाधन विभाग के अफसरों से उनकी सकारात्मक बातचीत हुई है, जिसके बाद अधिकारियों ने फिलहाल निर्माण का काम रुकवा दिया है। वहीं, ग्रामीणों ने काम रुकने के बाद एक बैठक की और सभी ने मिलकर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को करीब 15 सौ किसानों को मुआवजा दिए बगैर बांध का काम शुरू न कराने को लेकर पत्र लिखते हुए राष्ट्रपति से सामूहिक आत्मदाह की अनुमति मांगी है।
‘जल संसाधन विभाग अधिकारी से सकारात्मक हुई चर्चा’
आंदोलन कर रहे किसानों में से ही एक किसान ने बताया कि यहां अभी तीन गांव के ग्रामीण और किसान जमा हुए हैं। हमें आज ज्ञात हुआ था कि एसडीएम मैडम यहां आने वाली हैं। लेकिन किसी कारणवश वे नहीं आ पाईं। लेकिन जो उमरलिया साहब आए थे जल संसाधन विभाग से, उनसे मुलाकात हुई। उनसे सकारात्मक चर्चा हुई है और उन्होंने भी सहयोग किया है।
किसान ने बताया कि हमने उनसे कहा है कि अभी किसी भी प्रकार का कोई भी काम बांध से संबंधित प्रारंभ नहीं होना चाहिए। जब तक कि हमारा मुआवजा तय नहीं हो जाता। अगर आप किसी प्रकार का कोई आक्षेप या कोई और काम करते हो जो कानून को धता बताकर गलत तरीके से, किसी भी प्रकार से हो और बांध का निर्माण का काम शुरू होता है। तो हम सब किसानों ने मिलकर राष्ट्रपति को पत्र लिखा है कि अगर हमारी जमीन जाती है और हमारा किसी तरह का मुआवजा तय नहीं होता है, तो हम लोग डेढ़ हजार किसान सामूहिक आत्मदाह करने वाले हैं। इसके लिए हमने उनसे अनुमति मांगी है।
‘हम पर नया बांध जबरन थोप रही सरकार’
आंदोलन कर रहे किसान रवि पटेल ने बताया कि इस क्षेत्र में पांगरी सहित अन्य गांवों जिनमें करदली, बसाली, नागझिरी, नांदुरा के आसपास पहले से ही कुल छह बांध मौजूद हैं। उनके जरिए यहां के किसान सिंचाई भी कर रहे हैं तो अब इस नए बांध की इस क्षेत्र में कोई आवश्यकता ही नहीं थी। यहां सरकार और जल संसाधन विभाग मिलकर जबरन एक नया बांध हम पर थोप रहे हैं। इस क्षेत्र में मौजूद 108 प्रजाति के पेड़ों में से शीशम, बहेरा, बीजा और आंवला जैसी सात प्रजातियां लुप्त होने को हैं, जिनके साथ ही कई प्रकार की बेलें भी हैं। बांध बनने से इनका अस्तित्व भी खतरे में आ जाएगा। जैव विविधता (बायो डायवर्सिटी) के लिहाज से भी यह उचित निर्णय नहीं कहा जा सकता।
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